ध्वनि प्रदूषण आज पूरे देश के लिये एक भयानक समस्या


   हमारे चारों ओर का वह आवरण जो सभी जीव-जन्तुओं व वनस्पतियों के लिए अनुकूल होता है और जिसमें जीवन के सभी आवश्यकीय अवयव एक निश्चित अनुपात में पाये जाते हैं पर्यावरण कहलाता है। यदि किसी अवांच्छनीय कारण से इन अवयवों में से एक भी अवयव की मात्रा में परिवर्तन आ जाता है तो फिर इस पर उपस्थित जीवन के लिए खतरा पैदा हो जाता है। पर्यावरण प्रदूषण, ध्वनि, जल, वायु आदि अनेक प्रकार का होता है।
     ध्वनि प्रदूषण आज पूरे देश के लिये एक भयानक समस्या बनती जा रही है। देवभूमि उत्तराखण्ड जो शांत वादियों का प्रदेश कहा जाता था आज वही प्रदेश ध्वनि प्रदूषण का इतना शिकार हो चुका है कि पूरे देश का जिक्र ही नहीं किया जा सकता। जब हम अपने प्रदेश को इस समस्या से नहीं उबार सकते तो पूरे देश को क्या उबार पायेंगे। आज जगह-जगह पर शादी-पार्टियों में जिस प्रकार से डीजे या बैंड – बाजे आदि बजाकर ध्वनि प्रदूषण हो रहा है उस पर लगाम लगाने के लिये सरकार द्वारा कई प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं कुछ कमियॉ नजर जरूर आ ही जाती हैं। इन कमियों के लिए सरकार के साथ-साथ हम सभी ज्यादा जिम्मेदार हैं। सड़कों पर वाहनों को चलाते समय जिस प्रकार आज के नौजवान अत्यधिक आवाज वाले हौरन का प्रयोग कर रहे हैं उससे भी ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। ध्वनि प्रदूषण के कारकों में परिवहन के अलावा फैक्टरी, मशीनरी, निर्माण कार्य, उपकरण, बिजली उपकरण, आडियो मनोरंजन सिस्टम आदि भी आते हैं। ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, वह चिड़चिड़ापन महसूस करता है इसके अलावा उच्च रक्तचाप, नींद में गड़बड़ी, तनाव, आदि बीमारियों का सामना भी करता है। कंपनी व फैक्ट्रियों के शोर को कम करने के लिये फैक्ट्रियों में कम आवाज वाले जरनेटरों का प्रयोग किया जाना चाहिये। ध्वनि प्रदूषण जीव-जन्तुओं के लिये हानिकारक सिद्ध होता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण होने वाली क्षति के सर्वोत्तम ज्ञात मामलों में से एक समुद्री व्हेल की कुछ विशेष प्रजातियों की मृत्यु हो जाना है। उत्तराखण्ड में सरकार द्वारा शादी-पार्टियों में शोर को कम करने के लिये रात्रि दस बजे बाद डीजे व बैंड न बजाने का आदेश जारी किया है जो कई स्थानों पर लागू होता है।   
     ध्वनि प्रदूषण इतना खतरनाक होता है कि अगर एक वाहन के शोर से आदमी का सिरदर्द हो सकता है तो सड़कों पर चलते हजारों वाहनों का शोर एक साथ होगा तो उससे आदमी के दिमाग पर सीधा असर पड़ना स्वाभाविक है तथा इससे आदमी बहरा भी हो सकता है। आज अस्पतालों में जितने भी कानों की दिक्कत वाले रोगी आ रहे हैं, उनमें से लगभग 40 फीसदी लोग इसी षोर के कारण बीमारी के शिकार हुए हैं।
     अत्यधिक शोर के कारण बच्चों की पढ़ाई में भी विघ्न पड़ता है, बच्चों की पढ़ाई सही से नहीं हो पाती है जिसका खामियाजा उनको परीक्षा होने के बाद भुगतना पड़ता है। इसलिये हमें खुद अपने घरों से ही इस ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये कदम उठाने होंगे। अगर हम अपने घर से ही इसका जिम्मा उठायेंगे तो हम और लोगों को भी इसके प्रति जागरूक कर सकेंगे और कह सकेंगे। अगर हम खुद ही ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देंगे तो दूसरों भी कुछ नहीं कह पायेंगे। इसलिये हर संभव प्रयास रहने चाहिये कि ध्वनि का कम से कम प्रयोग किया जाये। आओ हम सब मिलकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपना योगदान देकर, समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें।, तब जिम्मेदारी किसकी होती ?