धरा-पुकारती, देहरादून। ३ अक्टूबर, २०१९, बृहस्पतिवार।
सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को संपूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुॅचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरूष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिये भी उपयोगी बताया गया है। जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं - दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें, ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ऊँ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें। श्वास भरते हुये दोनों हाथों को कानों से सटाते हुये ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकायें। ध्यान को गर्दन के पीदे 'विशुद्धि चक्र' पर केंद्रित करें। तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुये आगे की ओर झुकायें। हाथ गर्दन के साथ, कानों में सटे हुये नीचे जाकर पैरों के दायें-बायें पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें, माथा घुटनों का स्पर्ष करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केंद्रित करते हुये कुछ क्षण इसी स्थिति में रूकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें। इसी स्थिति में श्वास को भरते हुये बायें पैर को पीछे की ओर ले जायें। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकायें। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रूकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा विशुद्धि चक्र' पर ले जायें। मुखाकृति सामान्य रखें। श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्काशित करते हुये दायें पैर को भी पीछे ले जायें। दोनों पैरों की एड़ियाँ परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें ओर एडियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठायें। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगायें। ध्यान 'सहस्त्रार चक्र' पर केंद्रित करने का अभ्यास करें। ष्वास भरते हुये शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टाङ्ग दंडवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें, ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वांस की गति सामान्य रखें। इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुये छाती को आगे की ओर खींचते हुये हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जायें। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुये तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें। ष्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुये दायें पैर को भी पीछे ले जायें। दोनों पैरों की एड़ियाँ परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एडियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठायें। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगायें। ध्यान 'सहस्त्रार चक्र' पर केंद्रित करने का अभ्यास करें। इसी स्थिति में श्वास को भरते हुये बायें पैर को पीछे की ओर ले जायें। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकायें। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हो। इस स्थिति में कुछ समय रूकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान अथवा विशुद्धि चक्र' पर ले जायें। मुखाकृति सामान्य रखें। तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुये आगे की ओर झुकायें। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुये नीचे जाकर पैरों के दायें-बायें पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केंद्रित करते हुये कुछ क्षण इसी स्थिति में रूकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें। श्वास भरते हुये दोनों हाथों को कानों से सटाते हुये ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकायें। ध्यान को गर्दन के पीदे 'विशुद्धि चक्र' पर केंद्रित करें। उसके बाद अंतिम स्थिति, यह स्थिति पहली स्थिति की भांति रहेगी।
सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियाँ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं। यह पूरी प्रक्रि अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथ-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियाँ सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है। सूर्य नमस्कार के द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं, अथवा इनके होने की संभावना भी समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाडियाँ क्रियाशील हो जाती है, इसलिये आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं। सूर्य नमस्कार की तीसरी व पाॅचवीं स्थितियाँ सर्वाइकल एवं स्लिप डिस्क वाले रोगियों के लिये वर्जित है। सूर्य नमस्कार में 12 आसन होते हैं। इसे सुबह के समय करना बेहतर होता है। सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से शरीर में रक्त संचरण बेहतर होता है, स्वास्थय बना रहता है और शरीर रोगमुक्त रहता है। सूर्य नमस्कार से हृदय, यकृत, आँत, पेट, छाती, गला, पैर, शरीर के सभी अंगों के लिये बहुत लाभ है। सूर्य नमस्कार सिर से लेकर पैर तक शरीर के सभी अंगों को लाभान्वित करता है। यही कारण है कि सभी योग विशेषज्ञ इसके अभ्यास पर विशेष बल देते हैं। सूर्य नमस्कार के आसन हल्के व्यायाम और योगासनों के बीच की कड़ी की तरह हैं और खाली पेट कभी भी किये जा सकते हैं। हालांकि सूर्य नमस्कार के लिये सुबह का समय सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह मन व शरीर को ऊर्जान्वित कर तरो-ताजा कर देता है और दिनभर के कामों के लिये तैयार कर देता है। यदि यह दोपहर में किया जाता है तो यह शरीर को तत्काल ऊर्जा से भर देता है, वहीं शाम को करने पर तनाव को कम करने में मदद करता है।
यदि सूर्य नमस्कार तेज गति के साथ किया जाये तो बहुत अच्छा व्यायाम साबित हो सकता है और वनज कम करने में मदद कर सकता है। सूर्य नमस्कार मन शान्त करता है और एकाग्रता को बढ़ाता है। आजकल बच्चे महती प्रतिस्पर्धा का सामना करते है। इसलिये उन्हें नित्यप्रति सूर्य नमस्कार करना चाहिये क्योंकि इससे उनकी सहनशक्ति बढती है और परीक्षा के दिनों की चिंता और असहजता कम होती है। सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से शरीर में शक्ति और ओज की वृद्धि होती है। यह मांसपेशियों का सबसे अच्छा व्यायाम है और हमारे भविष्य के खिलाड़ियों के मेरूदण्ड और अंगों के लचीलेपन को बढ़ाता है। पाँच वर्ष तक के बच्चे भी नियमित रूप से सूर्य नमस्कार कर सकते हैं। जो भी इंसान अपनी जिंदगी में सूर्य नमस्कार को आधार बनाकर अपनी दिनचर्या आरम्भ करता है, उसे रोग-व्याधियाॅ छू भी नहीं सकती हैं, रोगों से दूर रहने का सबसे अच्छा उपाय सूर्य नमस्कार हैं, इसलिये जीवन में सूर्य नमस्कार को अपनी दिनचर्या में शामिल करके स्वस्थ रहने का प्रयास अवश्य करें।